(Vineet Katoch & Vinay Katoch द्वारा)
जो शांत होके गुंजता,
हाँ, मैं ही तो वो शोर हूँ।
आकाश हूँ, पाताल भी,
मैं सुखद हूँ, मैं विशाल भी।
शिव हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ…
पतन हूँ मैं, विकास हूँ,
तमस हूँ मैं, प्रकाश हूँ।
रुद्र हूँ, निगल लूँ सब,
हाँ, मैं ही तो विनाश हूँ।
मैं खंड भी, मैं अखंड भी,
प्रचंड हूँ, मैं ही शांति हूँ।
मैं शिव हूँ, मैं ही तो हूँ,
हाँ, मैं शिव हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ…
मैं घोर हूँ, मैं अघोर हूँ,
भीषण हूँ, मैं विभोर हूँ।
मैं पूर्ण हूँ, मैं शेष भी,
सर्वगुणसंपन्न और विशेष भी।
जगत का आधार मैं,
हाँ, मैं ही तू महेश हूँ।
हाँ, मैं ही तू महेश हूँ,
मैं शिव हूँ, मैं ही तो हूँ,
हाँ, मैं शिव हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ…
मैं आदि हूँ, मैं चींटी हूँ,
मैं राख हूँ, मैं अग्नि की ज्वाला हूँ।
सृजन में हूँ, मैं काल भी,
सुंदर भी हूँ, विकराल भी।
जो मृत्यु और मोक्ष बाँटता,
हाँ, मैं ही तो महाकाल हूँ।
🌺 “मैं शिव हूं” का गहरा अर्थ और महत्व
🔶 अर्थ
यह कविता शिव के अद्वितीय स्वरूप को दर्शाती है।
- “शांत होके गुंजता” का अर्थ है – शिव की मौनता में भी गूंज है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है।
- “आकाश और पाताल” – शिव सब कुछ हैं, सृष्टि से पहले और उसके बाद भी।
- “विनाश और विकास” – शिव नाश भी करते हैं ताकि नया सृजन हो सके।
- “घोर और अघोर” – शिव दोनों रूपों में हैं, सुंदरता और भयावहता के स्वरूप में।
- “काल और महाकाल” – शिव समय से परे हैं, मृत्यु और मोक्ष दोनों उन्हीं की कृपा से मिलते हैं।
🔷 आध्यात्मिक महत्व
शिव हमें सिखाते हैं कि जीवन में विरोधाभास ही संतुलन लाता है। विनाश और सृजन, सुंदरता और विकरालता, मौन और शोर – ये सभी अस्तित्व के पहलू हैं। शिव की आराधना हमें सिखाती है कि हमें हर परिस्थिति में धैर्य, समर्पण और साहस बनाए रखना चाहिए।
🔶 जीवन में उपयोगिता
- रोज इस कविता या शिव स्तुति का पाठ करने से मानसिक शांति, साहस, और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
- शिव की स्तुति जीवन में नकारात्मक ऊर्जा को हटाती है और सकारात्मक शक्ति का संचार करती है।
- कठिन परिस्थितियों में भी, “मैं शिव हूं” का जाप आत्मबल और विश्वास बढ़ाता है।
🌟 निष्कर्ष
“मैं शिव हूं” सिर्फ एक कविता नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू को स्वीकारने और सशक्त होकर आगे बढ़ने की प्रेरणा है। शिव की तरह हमें अपने जीवन में संतुलन बनाना चाहिए – चाहे वो मौन हो या शोर, सृजन हो या संहार।
“मैं शिव हूं” कविता शिव के अद्वितीय और रहस्यमय स्वरूप को दर्शाती है। यह कविता न केवल शिव की महानता को व्यक्त करती है, बल्कि यह भी बताती है कि शिव जीवन में स्थिरता और शक्ति का प्रतीक हैं। हालांकि शिव को अक्सर संहारक के रूप में पूजा जाता है, फिर भी वे सृजन और कल्याण के भी अधिष्ठाता हैं। इसके अलावा, कविता में शिव के विभिन्न रूपों – शांत, प्रचंड, विशाल, सूक्ष्म – को खूबसूरती से पिरोया गया है। इसलिए, यह कविता हमें सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी मानसिक संतुलन बनाए रखना और आंतरिक शक्ति को पहचानना आवश्यक है। साथ ही, कविता का भावार्थ यह है कि जीवन में संघर्षों के बावजूद शिव के आदर्शों को अपनाकर हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं।”